लॉकडाउन से पहले की कथा (लघुकथा)
कटिहार में ट्रेन रुकी, दोनों ने खाने का सामान बाहर निकालकर दोनों एयरबैगों को सीट के नीचे रख दिये । पानी की बोतलें सीट पर ही रख दिये । टिकट चेकर अबतक नहीं आये थे…. ट्रेन अब चल दी, स्पीड पकड़ ली । नाम भले ही महानंदा एक्सप्रेस थी, किन्तु कटिहार से आगे बढ़ने पर दिल्ली तक कहीं भी महानंदा नदी प्रवाहित नहीं होती थी । हाँ, कटिहार जिले में महानंदा बहती जरूर है, उत्तर दिशा से आकर झौआ पुल पारकर दक्षिण-पूर्व अमदाबाद प्रखंड की ओर बढ़कर यह नदी गंगा में मिल जाती है ।
ट्रेन कुर्सेला के गंगा पुल क्रॉसिंग करने लगी थी और शायद नवगछिया में टीटीई उस बोगी में चढ़ा । राजेश ने देखा, उन्होंने सदानंद से कहा कि वह लैट्रिनरूम से आ रहा है, टिकट चेकर को टिकट दिखा देना, किन्तु उनके बारे में चेकर से कुछ भी जिक्र नहीं करना ! वे लैट्रिनरूम की तरफ चल दिये । सदानंद को बड़ा अजीब लगा, किन्तु उनका कृत्य कौतुक भी लगा ! हालाँकि राजेश के पास जेनरल टिकट थी ! टीटीई के जाने के बाद वे लौटे और सदानंद से सटकर बैठ गए, फिर दोनों की नज़र मिली और दोनों ही मुस्करा उठे !