अक्ल-अंध
तूझे ईश्वर-प्रेम नहीं
फरियाद सुनाने का इक जरिया है
इतने टटोले मत कर मूर्ख
अपना ईश्वर तो निर्मला है !
ईश्वर सिर्फ डर है तेरे नजरिए में,
पुजारी बनकर तू आता है,
अपनो का तो तूझे खैर नहीं
यहाँ पूजने क्या आता है !
मत पूज तू इन पत्थरों को
तेरा भला न होगा
पूजने को तो तेरे अपने है
उनसे ही तू पूर्ण होगा !!