Author: सुरभी आनन्द

कविता

पिंजरे में बंद उत्कंठा

दूल्हा-शिकारी आया कपट-भरा प्रेम-जाल बिछाया फँसी दहेजी-दुल्हन चार-निवाले अंदर उड़ना चाही उत्कंठ-चिड़िया डाला मंगलसुत्र का फंदा महदूद हो गई पिंजरे

Read More