कविता

दम घूँटती इच्छाएँ

घूँट-घूँट पी गई सिसकियाँ
अपनी आँखों के प्याले से
दिल जमीं पर खिला था गुलाब
सींच दिया क्रोध के निवाले से

ऐ सुखी मस्कट अब तेरा यहाँ क्या काम
मेरी बंजर जमीं पर गुलाब न होगा
बीज है उत्कंठ का फिर भी,
वो दर्द से प्रफुल्लित न होगा

हाँ मेरे ऊपर जुल्म हुई,
मैं रेगिस्तान की धूप नजर आई
अपनो ने ही ऐसा थपेड़ा मारा
कि, काँटों-सी हो गई मेरी घुड़काई !!

सुरभी आनन्द

पिता "रामेश्वर नाथ तिवारी", माता "ममता तिवारी" की सबसे छोटी, संतान हूँ ! एम.एस.सी. उत्तीर्ण, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्ययनशील ! दो पुस्तकें की लेखिका- "भावनाओं का आत्म-मंथन" एवं "माई रेज्योल्युट वॉयस" ! रचनात्मक लेखन के साथ चित्रकला, फोटोग्राफी, संगीत में भी रुचि. पता- बिक्रमगंज, नसरीगंज रोड रोहतास जनपद बिहार पिन-- 802212. मो- 8757186487.