कविता

अक्ल-अंध

तूझे ईश्वर-प्रेम नहीं
फरियाद सुनाने का इक जरिया है
इतने टटोले मत कर मूर्ख
अपना ईश्वर तो निर्मला है !

ईश्वर सिर्फ डर है तेरे नजरिए में,
पुजारी बनकर तू आता है,
अपनो का तो तूझे खैर नहीं
यहाँ पूजने क्या आता है !

मत पूज तू इन पत्थरों को
तेरा भला न होगा
पूजने को तो तेरे अपने है
उनसे ही तू पूर्ण होगा !!

सुरभी आनन्द

पिता "रामेश्वर नाथ तिवारी", माता "ममता तिवारी" की सबसे छोटी, संतान हूँ ! एम.एस.सी. उत्तीर्ण, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्ययनशील ! दो पुस्तकें की लेखिका- "भावनाओं का आत्म-मंथन" एवं "माई रेज्योल्युट वॉयस" ! रचनात्मक लेखन के साथ चित्रकला, फोटोग्राफी, संगीत में भी रुचि. पता- बिक्रमगंज, नसरीगंज रोड रोहतास जनपद बिहार पिन-- 802212. मो- 8757186487.