दम घूँटती इच्छाएँ
घूँट-घूँट पी गई सिसकियाँ
अपनी आँखों के प्याले से
दिल जमीं पर खिला था गुलाब
सींच दिया क्रोध के निवाले से
ऐ सुखी मस्कट अब तेरा यहाँ क्या काम
मेरी बंजर जमीं पर गुलाब न होगा
बीज है उत्कंठ का फिर भी,
वो दर्द से प्रफुल्लित न होगा
हाँ मेरे ऊपर जुल्म हुई,
मैं रेगिस्तान की धूप नजर आई
अपनो ने ही ऐसा थपेड़ा मारा
कि, काँटों-सी हो गई मेरी घुड़काई !!