पिंजरे में बंद उत्कंठा
दूल्हा-शिकारी आया
कपट-भरा प्रेम-जाल बिछाया
फँसी दहेजी-दुल्हन चार-निवाले अंदर
उड़ना चाही उत्कंठ-चिड़िया
डाला मंगलसुत्र का फंदा
महदूद हो गई पिंजरे में दुल्हन
जीना हुआ मोहाल
पर, दुल्हा नहीं जानता था,
कौंध-भरे दुल्हन स्वर से
उसका दुल्हा अहंकार जाएगा
दुल्हन के नाम पे उसका था जो अर्थ
अब निर्मुक्त पहचान कहलाएगा
उड़ी दुल्हन छोड़ शिकारी जाल
खुद का आशियाना बनाएगी
अपने जैसी दहेजी-दुल्हन को
पिंजड़े से तलाक करवाएगी !!