मत काट मत काट विनती कर जोड़ करूँ।
तेरे काम आता हूँ तेरे हर दुख दर्द मैं हरूँ।
तेरे बुजु़र्गों ने पाला प्यार अपना लुटा कर,
घूर घूर देख रहा तू नियत तेरी से मैं डरूँ।
उजाड़ा दिया क्यों परिवार मेरा दोष बता,
देखता हूँ कुमति तेरी मन में आहें भरूँ।
स्वच्छ,हवा,पानी,हरियाली मिलती मुझ से,
करता खनन लूटता संपदा मेरी क्या करूँ।
बँधा जीवन तेरा मेरी ही साँसों की डोर से,
दिन रात तेरी ही सेवा में मानव मैं मरूँ।
मेरा जीवन तेरे हाथ, तेरा मेरे हाथ है पगले,
सोचता क्यों नहीं क्यों पेड़ का जीवन हरूँ।
पेड़ खूब तू लगा मेरा अपना परिवार बढ़ा,
काटो न मुझे कभी आज तुम से अर्ज करूँ।
तुम भी खुश रहो जमीं पर मैं भी खुश रहूँगा,
बन जाएं मीत दोनों मैं कभी तुम से न डरूँ।
— शिव सन्याल