लघुकथा

बदलाव

मैं कॉलेज से घर आया और पुनः कोचिंग में पढ़ाने के लिए निकलने ही वाला ही था कि अचानक  गेट पर कोई भीख मांँगने वाला (भिखारी) आया। उसकी लंबी जटा, बड़ी -बड़ी आंँखें, पीली मक्का के जैसे पीले दांँत, 5 फिट 6 इंच लंबा काला-मेला विशालकाय शरीर। मैले कपड़े जिस पर कई दाग लगे हुए थे। कंधे पर पुरानी मेली झोली लटकी हुई। बड़े- बड़े नाखून  जिसमें मैल भरा हुआ। गले में रुद्राक्ष जो बहुत पुरानी लग रही थी। टेढ़ी-मेढ़ी मूँछें जो  होठों से होती हुई मुंह में घुस रही थी। डरावनी शक्ल वाला भिखारी मेरे सामने याचक भरी दृष्टि से बोला- साहब मैं भूखा हूंँ। मुझे 10 रुपये दे दो। मैंने कहा-“तुम कितने हट्टे-कट्टे हो। काम क्यों नहीं करते हो?
वो जिद करने लगा। मुझे जल्दी थी। सो मैंने 10 रुपये जेब से निकालकर दे दिए। दो किलोमीटर आगे गुजरा वहाँ चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस खड़ी थी। मुझे महिला पुलिस ने रोका और कहा-“ओ भाई साहब गाड़ी रोको! गाड़ी के कागजात लाओ!” मैंने लाइसेंस दिखाया और कहा- ” मुझे कोचिंग में पढ़ाने के लिए जाना है। मैं लेट हो रहा हूंँ। वहांँ पर 100 बच्चों की क्लास है। प्लीज मैडम मुझे जाने दीजिए।” महिला पुलिस ने मेरी एक भी न सुनी। बाइक की चाबी निकाल ली और साइड में खड़े पुलिस महोदय जी को थमा दी। मैंने ट्रैफिक पुलिस महोदय से निवेदन किया। मेरी कोचिंग-क्लास है। लगभग 100 बच्चे हैं मेरा वहांँ इंतजार कर रहे हैं। पुलिस वाले को मेरे पर संदेह हुआ। वह अपनी पैनी नजरों से मुझे देख रहा था। उसकी मनः स्थिति को समझते हुए उसको मैने कोचिंग का फोल्डर निकाल करके बताया। फिर भी उन्होंने बाइक की चाबी नहीं दी। मैंने उन्हें कहा मेरे नहीं जाने से उन बच्चों का नुकसान होगा। यदि उस क्लास में आपका भाई ही हो और मेरे नहीं जा पाने से आपको कैसा लगेगा? तब भी उन्होंने मुझे चाबी नहीं दी। इतने में एक जीप आई और उसमें दो वरिष्ठ पुलिस वाले उतरे। उनमें से एक पुलिस वाले की बेटी को मैंने बी.एड. में पढा़या हुआ था। वे मुझे पहचान गए। जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे कोचिंग-क्लास में पढ़ाने जाना है। सर जल्दी में बाईक के कागजा़द नही ला सका ।सोरी सर। उन्होंने मुझे चाबी दे दी। तब वह पुलिस वाली मैडम मुझे घूर कर देख रही थी और गुस्सा कर कुछ बड़बडा़ रही थी। उस मेडम की वो छवी मुझे आज तक याद है। मैं उसे भूल नही सकता किंतु आज मैं मेडिकल से दवाई लेने के लिए उसी चौराहे से गुजरा तो वही पुलिस वाली मैडम न गाड़ी रोक रही थी और नही बाईक की चाबी माँग रही थी बल्कि प्रेम से वह मास्क बांँट रही थी अपनी जान को  जोखिम में डालकर। कर्मवीर पुलिस वाली की इस बदलती तस्वीर को मैं बार-बार याद कर रहा था किंतु वह अपनी सेवा में अडिग थी।
— डॉ. कांति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773