सुंदरता फ़ख्त फिनाइल की सफेद गोली भर है !
एक समय की बात है, अवंतिका युवराज को अपने रूप का घमंड हो गया था। एक दिन जब उसके द्वारा म्लेच्छ खोपड़ी देखा गया, तब उसने यह जाना कि मानवीय खोपड़ी में ऊपरी त्वचा की सुंदरता तो मात्र दिखावा है, तो उसी दिन वे वैरागी हो गए ! सुंदरता तो फिनाइल की सफेद गोली है, जो काला कोयले के प्रसंगश: तैयार की जाती है ।
काले-गोरे तो सम्पूर्ण दुनिया में व्याप्त है । यह तो कुम्हारों के आँवे से निकले बहुरंगे बर्त्तनों के समान हैं ! गोरी हिम का अभिमान गल जाती है और काले बादलों के भी ! काले कौवे की विष्ठा सफेद होती है, तो क्या ईर्ष्यालु गोरेजन काले वर्णधारक लोगों के पैखाना होंगे, नहीं न ! ‘ब्लैक डॉग’ कहनेवाले अंग्रेज वहाँ चले गए, जहाँ का नाम है- हवाखाना यानी वापस ! जगद्गुरु व्यास, पृथ्वी नृपेश ययाति, नेल्सन मंडेला, रंजीत सिंह, देवर्षि नारद, सदाशिव शंभू काले ही थे, राष्ट्रपिता गाँधी जी भी ठिगने कद के थे ।
काला रंग ऐसा है, जिनपर अन्य कोई रंग नहीं चढ़ता है । काली कोयल मीठी गीत सुनाती है, पर सफेद बगुले की बगुला भगत-नीति जगजाहिर है । वहीं इसके उलट भी उदाहरण हैं कि सफेद हंस विचारवान है, पर काले कौवे की कपटता को कौन नहीं जानता ? दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं । तभी तो कालिदास ने गुण को बड़ा माना है, रूप को नहीं ! विज्ञान लेखिका मेरी स्टीप्स युवावस्था में अपनी सुंदरता के लिए विश्वप्रसिद्ध थी ।
इससे उन्हें अभिमान हो गई । स्टीप्स के पिता ने उसकी अहम भाव को भाँपते हुए कहा- ‘बेटी, जिस रूप पर तुम गर्व कर रही हो, इस सुंदरता का श्रेय तुम्हें नहीं, बल्कि प्रकृति को है । वैसे युवावस्था में सब सुंदर ही लगते हैं । तुम्हारी उपलब्धि तो तब होगी, जब तुम 60 वर्ष की अवस्था में ऐसी ही सुंदर और आकर्षक दिखोगी !’