हम सब चलेंगे
मर्म नहीं, खुले में
कर्म की बात करेंगे
विश्व चेतना के साथ
अपनी शक्ति को जोड़कर
हम भी कुछ रचेंगे
पीड़ा, दुःख, दर्द की
असमानता की पोल खोलेंगे
इन गाथाओं के मूल में
स्वार्थ की क्रीड़ा को
हम जग जाहिर करेंगे
अन्य जीव की तरह
हमारा जन्म हुआ है
भेद – विभेद की रेखा
हर प्राणी के बीच
मनुष्य ने खींचा है
सुख के लोभ में
इच्छाओं के मोह में
बुद्धि को जोड़ा है
अंतरंग की पुकार से
वह दूर हो गया है
जीवन मरण की नियति
एक खुला सच है
सभी यहां से जरूर
एक दिन चले जाएंगे
इस दुनिया से दूर
अनंत के आलोक में
सब निर्विकार हो जाएंगे ।