कविता

अत्याचारी कंश

अहम्  वृक्ष  का  फल  रहा,  तब भारत आगे ‘महा’ लगा ,
महा शब्द,पर महान अलग ,औ’ मित्र, भाई, अहा ! सगा !
घृण-पापी  अत्याचारी  कंश,  जहां  रावण  बन  बैठा  था ,
राम  तहाँ  कृष्ण  बन  प्रभाकर, मुक्त  हस्त  ही ऐंठा  था ।
सुदामा  ने   दीनबंधु   बताया,  सांदीपनि   देकर  आशीष ,
खंड – द्वय  जरासंध,  शिशु-द्रथ,  द्रोण-कर्ण  देकर  शीश।
स्थिर  युद्ध  में धन-शासन  ने, कटु  वाक्य-व्यवहार  किया,
भीमसेन  ने तब अंध-पुत्र औ’ हृदयरोगी का आहार किया।
मिले  बधाई  और  मिठाई,  गांडीव  और  पाञ्चजन्य को,
कृष्ण अकेला मार गिराये, क्या, कौरवों के भारी सैन्य को ।
अंत  महाभारत – समर,  जीवित  शेष , रहने  लगे  उदास ,
बैकुंठ-शोक पर कृष्ण के , चिंतित रहने लगे पांडव – दास ।
ग्रहण कर भीष्मक-विचार, बन इठलाये  गुरु-जगत व्यास ,
करे कौन-से पुण्य कर्म हो, कि सत्य-स्वर्ग की बँधेगी आश।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.