परीक्षा घड़ी
शंख, लिखित दो ऋषि भाई थे, हंसध्वज के राज में ,
थे राजगुरु, राज-पंडित औ’ शास्त्र, ज्योतिष, काज में ।
वक्ता शंख, संतलेखक लिखित – दोनों थे लिपिबद्धकार,
पर मंथरा – सी कटु – कर्म, कटु – नारद थे निर्बन्धकार।
कथानक , चरित्र – चित्रण और संवाद के प्रेमी थे ,
शैली, देश, काल, उद्देश्य- रूपण, विवाद के प्रेमी थे।
दुर्बुद्धि आ घेरा गुरु को , आकर सुधन्वा ज़रा विलंब,
अवलंब पर राजा ने , कड़ाही तेल की मँगाया अविलंब ।
डब – डब करते तेल , बनाते जलकर आँच – ताप ,
मृत्यु – कारज कि शंख – लिखित मनतर साँच – जाप ।
कठोर चाम में बाहर , कि अंदर श्वेत कोमल नारिकेल,
परीक्षा लेने को आरद्ध वहाँ , कि गरम है या नहीं – तेल ।
गंभीर नाद, फल हुआ खंड, लगा कपाल में – से ठोकर ,
हुआ चित्त, लेकर धरा पर , संग मरण में – से सोकर।