मृणाल सेन, बनफूल और सतीनाथ भादुड़ी
वर्षान्त (2018) में दादा साहब फाल्के सम्मान प्राप्तकर्त्ता व पद्मभूषण मृणाल सेन का निधन हो गया । उनकी फिल्मों में बांग्ला उपन्यासकार बनफूल रचित साहित्य के दर्शन देखने को मिलते हैं ! बांग्ला फिल्मों सहित कई हिंदी फिल्मों के मेकर भी वे रहे हैं ! महान मृणाल दा को श्रद्धांजलि देते हुए हम मनिहारी (कटिहार) के ‘बनफूल’ की चर्चा करते हैं । हालांकि अब वे भी पार्थव्य लोक में रहे नहीं ! मृणाल दा ने उनके उपन्यास ‘भुवन शोम’ पर इसी नाम से राष्ट्रीय पुरस्कृत फ़िल्म की बनाये थे । वे पेशे से ‘डॉक्टर’, किन्तु साहित्य-साधक थे। वे बांग्ला के महान उपन्यासकार थे । हाटे बजारे, भुवन शोम आदि दर्जनों उपन्यासों के लेखक बोनोफूल व बनफूल ने कई लेख, कविताएँ भी लिखा है । सन1975 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाजा। उस वर्ष ‘पद्मभूषण’ प्राप्तकर्त्ता की सूची में उनका नाम 10वें क्रम में था, किन्तु बोनोफूल व बनफूल नहीं, अपितु उनका मूल नाम ‘बालाइ चंद्र मुखोपाध्याय’ दर्ज है । पद्म अवार्ड की केटेगरी में उनका चयन ‘साहित्य और शिक्षा’ अंतर्गत हुआ था तथा वे ‘बिहार’ कोटे से चयनित हुए थे । यह कहना सरासर गलत है कि उनका चयन ‘प. बंगाल’ से था ! इसके अतिरिक्त महान बांग्ला साहित्यकार सतीनाथ भादुड़ी बिहार के पूर्णिया जिला से थे, तो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का बचपन भी भागलपुर में बीता था ।