मोबाइल
झांकते रहते हैं दिन रात लोग इसमें
मोबाइल खिड़की बन गया है…
देखता कोई दूसरों की जिंदगी इसमें
कोई अपनी जिंदगी दिखाता है
तमाशे वाले की फिरकी बन गया है…
सत्य से दूर बस, एक खिड़की का सत्य
छवि इसमें बनाता इसी में दिखाता कृत्य
अस्तित्व मानो खिड़की बन गया है…
होके मजबूर, अपनों से रहते जो दूर
सहारा बन उनका ला देता वो नूर
मन की मिसरी बन गया है…
छूट जाए कुछ भी पर ये छूटने ना पाए
मिले ना कुछ दाना पानी , बस यह मिल जाए
धड़कन जिगर की बन गया…
🔥Sunita Dwivedi🔥 kanpur