सरपट जीवन
उसने वर्गोंन्नति पाई यानी परीक्षा परिणाम मेरे पक्ष में रहा, टॉपर कहलाया, किंतु गर्वता को कोई स्थान नहीं दिया उसने ! परिजन और प्रियजन मिलने को आने लगे थे, किंतु अपने में खोया रहा था, कुछ पाने, कुछ देने, कुछ कसकने को ! पहनावे को उनके पास सिर्फ 2 जोड़े फुलपैंट-शर्ट ही रखा था उसने । एक जोड़े शरीर के साथ, दूसरी जोड़ी पीठ पर लड़नेवाली बैग के अंदर । अत्याधुनिक सुविधा से वंचित एक लॉज में रहता था, ताकि किराया कम देना पड़े । इसबार की डीपी में पिताजी ने कुछ अधिक रुपये मनीऑर्डर कर दिए थे, ताकि जीन्स-टीशर्ट खरीदे जा सके ! …..किंतु पहनावे से दर्शन उच्च थोड़े होते हैं, इसलिए उन अतिरिक्त रुपयों से उन्होंने दर्शन की पुस्तकें खरीद लिए थे ! जीन्स-टीशर्ट पहनने का विचार तब भी मन में नहीं था, आज भी नहीं है। इसतरह मनीष का जीवन सरपट भाग रहा है।