अनुकरणीय कृति
अगर आपको आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ने में रुचि है, तो परमसंत महर्षि मेंहीं की ‘सत्संग योग’ पढ़िए और योग कीजिए। कोई भी ‘संत’ स्थान, धर्म और काल विशेष से परे होते हैं, बावजूद बिहार, झारखंड आदि राज्यों व नेपाल, जापान आदि देशों में लोकप्रिय संत महर्षि मेंहीं और उनके आध्यात्मिक-प्रवचन से भारत के राष्ट्रपति डॉ. शर्मा, प्रधानमन्त्री श्री वाजपेयी सहित कई राज्यो के राज्यपाल, मुख्यमंत्री , नेपाल के महाराजा सहित अनेक व्यक्ति प्रभावित हुए हैं।
संत टेरेसा और बिनोवा भावे उनसे खासे प्रभावित थे। ‘सत्संग योग’ पुस्तक उनकी अनुकरणीय कृति है। जिसतरह से भगवान बुद्ध के लिए बौद्धगया महत्वपूर्ण रहा है, उसी भाँति महर्षि मेंहीं के लिए कुप्पाघाट, भागलपुर महत्वपूर्ण स्थल है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु इस स्थल के दर्शन करने आते हैं । मैंने विगत सितम्बर में इस संत को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदानार्थ आधिकारिक ‘प्रार्थना-पत्र’ गृह मंत्रालय, भारत सरकार को भेजा है। इस समाचार पत्र के माध्यम से पाठकों से अपील है, वे सब इस मुहिम को मंजिल तक पहुँचाए।
धार्मिकता और आध्यत्मिकता में अंतर है, क्योंकि धार्मिकता पुनर्जन्म पर अवलम्बित भी है, वहीं आध्यात्मिकता ‘मोक्ष’ की ओर ले जाता है। ‘योग’ कई बिम्बों के सापेक्ष शारीरिक निरोगता के लिए भी, तो धार्मिकता और आध्यात्मिकता के लिए भी !