रियल स्टोरी
भारतरत्न और अभूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब की आत्मकथा की ओर बरबस आकृष्ट होता चला जाता हूँ, जो वैमानिकी इंजिनियरिंग का स्नातक डिग्री लेने के बाद उनके सामने भविष्य संवारने व घर का आर्थिक संकट दूर करने के लिए दो विकल्प थे और दोनों के साक्षात्कार के लिए कलाम साहब को उत्तर भारत तो जाना ही था । दक्षिण भारत का रहन-सहन और खान-पान तथा उत्तर भारत के रहन-सहन और खान-पान में बड़ा अंतर है। पहला विकल्प एयरफोर्स में ‘सह-पायलट’ का था और दूसरा रक्षा मंत्रालय में ‘वैज्ञानिक’ पद के लिए था । मिस्टर अब्दुल कलाम ने दोनों पद के लिए आवेदन डाल दिया और कुछ माह बाद दोनों जगहों से उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलावा आया। दोनों इंटरव्यू की तिथियों में कुछ दिनों का अंतर था । पहला साक्षात्कार ‘वैज्ञानिक’ पद के लिए Defence Ministry का कार्यालय यानी दिल्ली में था, जहाँ इंटरव्यू कुल मिलाकर अच्छा रहा था । फिर कुछ दिनों के बाद Air Force में ‘सह-पायलट’ के लिए इंटरव्यू देहरादून में था, जिनका रिजल्ट उसी दिन दिया जाना था, उन्हें इस रिजल्ट से बड़ी आशा थी और तुरंत नौकरी पाने की लालसा भी ! कुल सीट 8 ही थी और उन्हें इंटरव्यू में आए 25 Candidates में 9 वां स्थान मिला था । फिर किशोर कलाम निराश हो गए। दिल पर बोझ लिए कलाम ऋषिकेश चले गए, जहां उन्होंने पहले पावन गंगा में स्नान की, फिर गौतम बुद्ध जैसे दिखने वाले स्वामी शिवानंद से मुलाक़ात की, उस समय स्वामी शिवानंद के चारों ओर अनेक साधु-संत ध्यान में लीन थे । उन्होंने स्वामी जी के समक्ष अपना नाम बताया, किन्तु मुस्लिम नाम होने के बावजूद वहाँ उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। युवक कलाम ने देहरादून इंटरव्यू की नाकामयाबी के बारे में सारी बातें स्वामी जी से कहा । स्वामी शिवानंद ने मुसकराते हुए कहा– ‘ख़्वाहिश अगर दिलों-जान से निकला हो, वह पवित्र हो, उसमें शिद्दत हो, तो ऐसी असफलता मायने नहीं रखता है और असफलताओं से घबराना कैसा ? इसकी चिंता व्यर्थ करना ! धीरज और आशा में कमाल की Electronic Magnetic Energy होती है, दिमाग जब सोता है तो यह Energy रात की खामोशी में बाहर निकल जाती है और सुबह कायनात, ब्रह्मांड, सितारों की गति को अपने साथ समेट कर दिमाग में लौट आती है। इसलिए जो सोचा है, उसका निर्माण अवश्य है। वह आकार लेगा। तुम विश्वास करो, अपने चरैवेति श्रम पर, इस निर्माण पर, सूरज फिर से लौटेगा, बहार फिर से आएगी और तुम्हारा इंतजार तो कोई और कर रहा है, जिससे ऊपर कोई पद नहीं है और उसके बाद सीधे स्वर्गारोहण!” स्वामी जी की बातें रहस्यात्मक थी, किन्तु युवक कलाम को इससे संतुष्टि मिली, फिर कलाम उस असफलता को भुलाकर दिल्ली आ गया, जहाँ उन्होंने ‘वैज्ञानिक’ पद के लिए इंटरव्यू दिया था । परिणाम का पता लगाने पर उन्हें सीधे Appointment Letter सौंप दिया गया और फिर 250 रुपये प्रति माह के वेतन पर ‘वैज्ञानिक’ पद पर नियुक्त कर लिया गया। इससे यही आशा बँधती है कि मैं भी तमाम असफलताओं को पार कर किसी बड़े मुकाम की ओर शनै:-शनै: बढ़ रहा हूँ, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ! बारम्बार की असफलताओं से निराशा और हताशा ही हाथ लगती है!