भुजिया-गुझिया
होली में रंगों से सराबोर करके भी, कुर्ते फाड़कर भी हम उन दोस्तों कहते हैं- बुरा ना मानो होली है। दोस्त लाख गाली-गलौज करते हैं, फिर भी होली के दिन इसे हम बुरा नहीं मानते हैं, अपितु उन्हें घर ले जाकर घर बने पूवे-पकवान खिलाते हैं । इनमें किसी भी धर्मावलम्बी दोस्त हो !अब तो इस सुअवसर पर नमकीन चीजें भी बनती हैं, गुजिया, भुजिया, दहीबड़ा, पापड, पकौड़े, कचरी, बड़ी इत्यादि। अब तो होली के दूसरे-तीसरे दिन, यहाँ तक कि सप्ताहांत तक बासी पूवे खाने-खिलाने का अलग ही क्रेज है, वो भी शिमला मिर्चवाले अचार के साथ स्वाद का क्या कहना ? फागुन पूर्णिमा को लेकर सप्ताह-पन्द्रह दिनों से होली-गीतों और कजरी-गीतों की रिहर्सल शुरू हो जाती है, किन्तु अब वैसी होली-गीतों के गायन का जमाना लद गए । पहले तो घर-घर जाकर लोग ढोलों की थाप और खँजरी बजा-बजा कर होली का सेलिब्रेशन करते थे, लोग राजनीतिक व्यक्तियों पर कमेंट कसते थे और साथ ही कह देते थे- बुरा ना मानो होली है।
जब से यह पर्व शुरू हुई है, तब से लोग बुरा नहीं मान रहे हैं ! ऐसा सोचते हैं लोग । मंगरु भैया यह कहकर आज से ही टिहोक रहे हैं !