वैर का अंत वैर से नहीं
डॉ. राधाकृष्णन विश्व पर्यटक थे । इनकी यात्राएं धर्म और संस्कृति को लेकर अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र तथा विश्व के संत-समाज में भारत का सम्मान बढ़ाने के लिए थी। स्तालिन रूस के ऐसे व्यक्ति थे, जो धर्म और आध्यात्मिकता से परे भौतिकवाद पर विश्वास करते थे, लेकिन दूसरी मुलाकात में जब डॉ. राधाकृष्णन ने उनसे कहा- “भारत में एक ऐसे राजा हुए, जिसने बहुत समय तक रक्तपात किया, लेकिन एक दिन उसने अनुभव किया कि हिंसा मानव जाति पर कलंक है । इसलिए उसने हिंसा का मार्ग त्याग दिया और प्रेम, अहिंसा, शांति की नीति अपना ली।” इस बात पर स्तालिन चुप रहे। शायद उन्हें रह-रहकर याद आती होगी, बुद्ध के उस वचन का यानी ‘वैर का अंत, वैर से नहीं !