कविता

अभिमान

अभिमान मुझे मेरी आत्मा पर है,
कभी कोई ग़लत काम करने नहीं देती ,
अभिमान मुझे मेरी सोच पर है,
जो हरदम खुशियां बिखेरता है,
अभिमान मुझे मेरे होने पर है,
जो दूसरों के लिए तत्पर रहता है,
अभिमान मुझे मेरे मात पिता पर है,
जिन्होंने इतने अच्छे संस्कार दिए,
अभिमान मुझे मेरे मेरे गुरु पर है,
जिन्होंने मुझे इतनी अच्छी शिक्षा दी,
अभिमान मुझे मेरे सास ससुर पर है,
जिन्होंने बेटी से ज्यादा दुलार दिया,
अभिमान मुझे मेरे व्यकित्व पर है,
जो सबके लिए सोचता है,
इस शरीर पर क्या अभिमान करूं,
जो कल मिट्टी मिल जाना है।।
— गरिमा लखनऊ

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384