अब तो कई गाँधी हैं यहाँ !
मोहनदास करमचंद गाँधी ने वकालत का अध्ययन पूर्ण कर लिए तब सर्वप्रथम सौराष्ट्र के व्यापारी अब्दुल्ला एंड अब्दुल्ला कम्पनी की पैरवी करने दक्षिण अफ्रीका गए । उनके प्रथम दो पुत्र का वंशज वहीं रह गए । कुछ USA और अन्य देश में भी है । उनके बाद के दो पुत्र के वंशज भारत में हैं । बड़े पुत्र इस्लाम धर्म अपना लिए थे !
श्री गोपाल कृष्ण गाँधी, श्रीमती इला गाँधी, श्री तुषार गाँधी इत्यादि तो ‘मोहनदास’ के वंशबेल से जुड़े हैं…..
किन्तु स्व. फ़ीरोज़ गाँधी, स्व. इंदिरा गाँधी, स्व. राजीव गाँधी, स्व. संजय गाँधी, श्रीमती सोनिया गाँधी, श्रीमती मेनका गाँधी, श्री राहुल गाँधी, श्रीमती प्रियंका गाँधी, श्री वरुण फ़ीरोज़ गाँधी…… ‘मोहनदास’ के वंशबेल से नहीं हैं, किन्तु राष्ट्र में राष्ट्र के लिए सक्रिय हैं….
ऐसे में हम किस ‘गाँधी जी’ को याद रखें ?
वह जो ‘राष्ट्रपिता’ है, किन्तु उसे किसने ‘राष्ट्रपिता’ की पदवी दिया, RTI के माध्यम से भारत सरकार नहीं बता पाए!
इतिहास में एक अदला-बदली उपाधि भी हुआ, जैसे कि ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ ! श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ‘मोहनदास’ को ‘महात्मा’ कहा, तो मो. क. गाँधी ने ‘रवीन्द्रनाथ’ को ‘गुरुदेव’ !
उनकी आत्मकथा में जिन बिंदुओं को उन्होंने पिरोया है! कई प्रयोजन में वे ‘महात्मा’ शब्द से दूर जाते दिखते हैं !
हाँ! अनशन, अहिंसा, सत्यवद, विदेशी कपड़े का त्याग व खादी इत्यादि मामले में उनका ‘महात्मा’ रूप उभर कर आता है, किन्तु वे ‘कस्तूर’ पर भी हाथ उठाये थे, इससे स्पष्ट है कि वे मानव ही थे, महामानव नहीं! वे आम-आदमी थे, किन्तु उनकी समाधि-स्थल का नाम ‘राज घाट’ होना आम-आदमी से इतर ‘राजाओं’ के विन्यस्त: लगता है ।
सही उच्चारण में शब्द ‘गाँधी’ सही है, किन्तु वे ‘गांधि’ लिखते थे!
वंशबेल के साथ ‘महात्मा’ शब्द ठीक है क्या ? हमारे यहाँ उसे भी महात्मा कहा जाता है, जो शादी नहीं किए हैं! …. किन्तु मेरा इशारा ‘राहुल गाँधी’ भी नहीं है, क्योंकि वे यथार्थपरक न होकर चाटुकारों से सुनी-सुनाई बातों को लेकर ही प्रहसन किया करते हैं!