लेख

गुबरैला

हम अधिकतर लोग गांव से शहरों में आकर बसे हैं और कुछ एक का अभी भी गांवो से सम्बन्ध होगा .गांवों में हम सभी ने एक ऐसा कीड़ा भी देखा होगा जो उस स्थान पर मिलता है जिस जगह पर गाएं भैंसों का गोबर पड़ा होता है. मैं समझता हूं ध्यान में आया होगा आप लोगों के. उसका चित्र भी आपकी आंखों के सामने गुजर गया होगा. जी हां मैं जिस कीड़े की बात कर रहा हूं उसे गुबरैला कहते हैं .और यह गोबर प्रिय कीड़ा होता है.

यह कीड़ा सुबह उठकर गोबर की तलाश में निकलता है दिनभर जहाँ से गोबर मिले उसका गोला बनाता रहता है.

यह बात तनिक अविश्वसनीय लग सकती है लेकिन गोबर में पाया जाने वाला कीड़ा ‘ गुबरैला’ प्रकृति में सबसे ज्यादा ताकतवर प्राणी है.आधा इंच लंबा गुबरैला अपने वजन की तुलना में 1141 गुना अधिक वजन खींच सकता है.

हां हम बात कर रहे थे ये कीड़ा सुबह उठकर गोबर की तलाश में निकलता है और दिनभर जहाँ से गोबर मिले उसका गोला बनाता रहता है.
शाम होते होते यह अच्छा ख़ासा गोबर का गोला बना लेता है. फिर इस गोबर के गोले को धक्का मारते हुए अपने बिल तक ले जाता है, बिल पर पहुंचकर उसे अहसास होता है कि गोला तो उसने इतना बड़ा बना लिया लेकिन बिल का छेद तो छोटा है, बहुत कोशिश के बावजूद वो गोला बिल में नहीं जा सकता.

हम सब भी गोबर के उसी कीडे गुबरैला की तरह ही व्यवहार कर रहे हैं. सारी ज़िन्दगी चोरी, मक्कारी, चालाकी, दूसरो को बेबकूफ बनाकर धन जमा करने में लगे रहते हैं, जब आखिरी वक़्त आता है तब पता चलता है के ये सब तो साथ जा ही नहीं सकता. साथ जाते है तो हमारे अच्छे व बुरे कर्म .

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020