स्पष्ट नीति या कुछ और
कहकर के पार
बुनकर के सार
यहाँ नहीं, तो वहाँ !
यह चिरस्मरणीय है
कि मझधार
और लगकर
तार-तार तैयार
रहनुमाई विरोध के
विन्यास तले
आखिरकार
आकार-प्रकार
या उनसे मिलने के सवाल पर
एक बंद लिफाफा
खुलने से रहा ।
तैयारी के बगैर भी
आगंतुक यहीं बैठे हैं ।
नदी के पार तले
कुछ भी
अनावश्यक नहीं है ।
तुम बिन के हस्तक्षेप
उनके बिना आक्षेप
यदि कुछ कहूँ या ना कहूँ
या यूँ ही विराजमान रहूँ
या रोज-रोज सुबह एक
कि कोई फूल विश्राम न कर जाए !
कुत्ता-बिलाय स्वाहा
रहबर दिलबर
कुरु-कुरु स्वाहा !