उम्मीद
आज रात
की मैंने खुद से बैठ कर बात
मैंने मुझको अपने सारे दर्द बताए
वो जो थे मुझ में जाने कब से समाय
आज रात
की मैंने अपने डर से भी एक मुलाक़ात
जो शायद बस थे मेरे ख्यालात
आज उन पे हंसी मैं
जिनमें थी बंदी मैं
आज रात
फिर सजाई मैंने
यादों की बारात
मेरे अतित , मेरे बचपन की सौगात
वो मुश्किल हालत
वो हंसाते, गुदगुदाते लम्हात
वो आंखों में आंसू ले आने वाले
दिल से निकले हुए जज़्बात
सब ,सब आए आज मुझको याद
आज रात ….
फिर से सपनों को जगाया है
खुद जाग के अपने सपनों को सजाया है
आज फिर मैंने अपने सपनों को खुद से मिलाया है
उसे आज थोड़ा थोड़ा चलना सिखाया है
कल शायद पंख भी दे दूं
एक उम्मीद मन में जगाया है
✍️निरूपा कुमारी