कविता

उम्मीद

आज रात
की मैंने खुद से बैठ कर बात
मैंने मुझको अपने सारे दर्द बताए
वो जो थे मुझ में जाने कब से समाय
आज रात
की मैंने अपने डर से भी एक मुलाक़ात
जो शायद बस थे मेरे ख्यालात
आज उन पे हंसी मैं
जिनमें थी बंदी मैं
आज रात
फिर सजाई मैंने
यादों की बारात
मेरे अतित , मेरे बचपन की सौगात
वो मुश्किल हालत
वो हंसाते, गुदगुदाते लम्हात
वो आंखों में आंसू ले आने वाले
दिल से निकले हुए जज़्बात
सब ,सब आए आज मुझको याद
आज रात ….
फिर से सपनों को जगाया है
खुद जाग के अपने सपनों को सजाया है
आज फिर मैंने अपने सपनों को खुद से मिलाया है
उसे आज थोड़ा थोड़ा चलना सिखाया है
कल शायद पंख भी दे दूं
एक उम्मीद मन में जगाया है
✍️निरूपा कुमारी

निरूपा कुमारी

कोलकाता, पश्चिम बंगाल, शिक्षा:ऑप्टोमेट्री में स्नातक, श्री कर्ण पल्लव से विवाहित पेशे से ऑप्टोमेट्रिस्ट हूं,और शौक से लेखिका।मेरी रुचि पठन पाठन के अलावा बागवानी,संगीत और पाक कला में है। लिखने का शौक मुझे अपने पिता द्वारा प्राप्त हुआ क्युकी वो बहुत उम्दा लिखते थे, पर मेरी रुचि मेरी डायरी तक ही सिमटी हुई थी ।पर अब मैं तौर पे ऑनलाइन ग्रुप्स में लिखती हूं।एक पत्रिका (अदम्य - साहित्यनामा ) में मेरी रचना प्रकाशित हुई है, और एक काव्य वाणी (भाग २) नामक पुस्तक जो एक काव्य संग्रह है शीघ्र प्रकाशित हो रही है