कविता

चांद का सफर

उस दिन चांद को था देखा मैंने,
कर रहा था वो भी किसी का इंतजार
देखा था उसे मैंने इधर उधर भटकते,
होके बेकरार…
कभी जाता था वो नदी के तीरे,
कभी जाता था छत पे,बादलों में छिपके
कभी पेड़ो के पीछे से,झांकता झरोखों से …,धीरे से..
बेकरारी बढ़ती जाती थी,और चांद घटता जाता था,
घटता ही रहता था…
और फिर मायूस होके अंधेरे में सो रहता था;;;
पर एक उम्मीद का साया….,उससे जाके कहता था
बाहर निकलो, अपने दिल में पूरी रोशनी भरकर
आ जाएगी वो खुद ही सामने, तुम्हारी चांदनी बनकर
प्रेम अगर सच्चा है,असर दिखाएगा जरूर…
थोड़ा सबर कर ,
चल अब फिर से सफर कर..
मिलन का वक्त आयेगा जरूर….!!!!
✍️निरूपा कुमारी

निरूपा कुमारी

कोलकाता, पश्चिम बंगाल, शिक्षा:ऑप्टोमेट्री में स्नातक, श्री कर्ण पल्लव से विवाहित पेशे से ऑप्टोमेट्रिस्ट हूं,और शौक से लेखिका।मेरी रुचि पठन पाठन के अलावा बागवानी,संगीत और पाक कला में है। लिखने का शौक मुझे अपने पिता द्वारा प्राप्त हुआ क्युकी वो बहुत उम्दा लिखते थे, पर मेरी रुचि मेरी डायरी तक ही सिमटी हुई थी ।पर अब मैं तौर पे ऑनलाइन ग्रुप्स में लिखती हूं।एक पत्रिका (अदम्य - साहित्यनामा ) में मेरी रचना प्रकाशित हुई है, और एक काव्य वाणी (भाग २) नामक पुस्तक जो एक काव्य संग्रह है शीघ्र प्रकाशित हो रही है