निश्छल मन
मैं अबोध नादान हूँ
तभी तो खुशहाल हूँ,
छल,प्रपंच,ईर्ष्या, द्वेष से दूर
अपने में मस्त
महकती,चहकती हूँ।
बस आप सब से विनती है
मैं जैसी हूँ
वैसी ही रहने दीजिएगा,
मेरे मन में
अनीति, अपने पराये,भेदभाव
जाति,पंथ,नफरत का
जहर मत घोलिएगा।
मैं निश्छल मन लिए
यूँ सदा रहना चाहती हूँ,
आप सबको हँसते मुस्कराते
प्रेम,प्यार ,सदभाव से रहते
सदा देखना चाहती हूँ।
मेरा विश्वास है कि
आप सब मेरी भावना का
मान सम्मान रखेंगे,
बेटी हूँ तो क्या हुआ?
अपने हृदयों में थोड़ा सा ही सही
सुरक्षित स्थान रखेंगें।