कविता

माया महा ठगनी हम जानी

अल्सुबह अलसाई सी धूप में
ठहल रहा जब मैं छत पर
तभी दिखा 8 P M का
एक सौ अस्सी एम एल का
खाली पैकेट
मैं सात्विक शाकाहारी
मुझे क्या इससे लेना
खाली हो या भरा हुआ
पर इसने मेरे मन में
एक बार तो हलचल कर दी
क्या क्या छल करती
यह माया
क्या क्या खेल दिखाती है
मेनका विश्वामित्र की कहानी
तत्क्षण स्मरण करादी
भटक रहा था मैं अभी
तभी कानों में पड़ी
दूर कहीं
लाउडस्पीकर पर बजती
कबीर की यह वाणी

माया महा ठगनी हम जानी।।
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।।
केसव के कमला वे बैठी
शिव के भवन भवानी।।
पंडा के मूरत वे बैठीं
तीरथ में भई पानी।
योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी।।
काहू के हीरा वे बैठी
काहू के कौड़ी कानी।।
भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी।।
कहे कबीर सुनो भई साधो
यह सब अकथ कहानी।।

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020