धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विचार विमर्श- 5

इस शृंखला के पांचवें भाग में कुछ विचार होंगे और उन पर हमारा विमर्श होगा. आप भी कामेंट्स में अपनी राय लिख सकते हैं-

1.क्या जीवन का हिस्सा है बचत की आदत डालना?

जीवन में जरूरी खाने-खर्चने के बाद बचत की आदत डालना जीवन का अनिवार्य हिस्सा है. अक्सर हम ऐसा करते भी हैं. अचानक आपदा-विपदा-मुश्किल के समय, हारी-बीमारी के समय यही बचत हमारा सबल सहारा बनती है. देखा गया है, कि घर में बच्चे के जन्म लेते ही हम नचत करना शुरु कर देते हैं, ताकि उसकी शिक्षा-दीक्षा, विवाह आदि के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े. हम ही क्यों चींटी, मधुमक्खी, चिड़िया, बंदर आदि भी बचत करते देखे गए हैं. सुनियोजित बचत जीवन का एक हिस्सा है और अगर हमने अब तक बचत की आदत नहीं डाली है, तो आज से ही बचत की आदत डालना शुरु कर लेना चाहिए. बचत करना एक अच्छी आदत भी है और जीवन की अपरिहार्य आवश्यकता भी. बच्चों में भी बचत की आदत डालना अत्यंत आवश्यक है.

2.क्या मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या उचित है?

वसुधैव कुटुंबकम की भूमि पर मज़हब और कटटरता की बात, धर्म निरपेक्ष्य राज्य में विचारणीय है l जहाँ प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म व मतानुसार पूजा करने एवं अपनी संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है l हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि सभी धर्मों के अनुयायी भाई चारे की भावना से एकसाथ वर्षो से प्रेम भाव से रह रहे हैं, देश की अस्मिता बचाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर रण में कूद पड़े हैं ऐसे देश में मजहबी कटटरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या करना कुछ लोभ के लिये उचित नहीं l

3.क्या सभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव है?
आज की चर्चा का विषय है- क्या सभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव है?
सरकारी नौकरी को स्थायित्व की गारंटी, अधिक वेतन और बेहतर सुविधाओं वाला मनकर सभी पढ़े-लिखे लोग सरकारी नौकरियों के पीछे भागते हैं. सम्भवतःसभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव नहीं है. इसका पहला कारण है जनसंख्या के आधिक्य के साथ-साथ साक्षरता और शिक्षा का अत्यधिक प्रचार-प्रसार-विस्तार. दूसरे शिक्षा में नौकरी पाने की योग्यता भी सब में नहीं ही होती. इसका कारण शिक्षा में रोजगार आधारित शिक्षा न होने जैसी कुछ खामियां होना भी है, फिर सभी शिक्षा को गंभीरता से लेते भी नहीं. शिक्षा महज डिग्री पाने का जरिया बन गई है. सरकार का तो पूरा प्रयास रहता है, कि कम पढ़े-लिखों को भी सरकारी नौकरी मिल जाए, लेकिन ऐसी नौकरियां सभी को स्वीकार्य नहीं होतीं.

4.सबसे बड़ा आलसी कौन होता है?

आलस्य इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है. आलसी का होना न होना बराबर है. आलसीपन किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं होता. न तो सेहत के लिए और न ही सफलता के लिए, फिर भी कुछ लोग आलसी ही बने रहना चाहते हैं, अपने शरीर को हिलाने की जहमत नहीं उठाते. शोध की मानें तो अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार हांगकांग जहां विश्व का सबसे एक्टिव देश है तो वहीं इंडोनेशिया सबसे आलसी देश है. हांगकांग के लोग प्रतिदिन औसतन 6880 कदम चलते हैं वहीं इंडोनेशिया के लोग महज 3513 कदम ही चलते हैं. 46 देशों पर किए गए सर्वे में भारत को भी दुनिया के सबसे आलसी देशों की सूची में डाला गया है. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार भारत इन देशों में 39वीं रैंकिंग पर है. भारत में लोग औसतन एक दिन में 4297 कदम चलते हैं. दुनिया का सबसे बड़ा आलसी जानवर कोला कोला होता है. आलस्य समय भी गंवा देता है और अवसर भी. सबसे बड़ा आलसी वह होता है, जो समय और अवसर का लाभ नहीं उठाता, काम को टालता रहता है और अपने साथ-साथ अपने साथ रहने वालों को भी मुसीबत में डाल देता है.

मन-मंथन करते रहना अत्यंत आवश्यक है. कृपया अपने संक्षिप्त व संतुलित विचार संयमित भाषा में प्रकट करें.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विचार विमर्श- 5

  • लीला तिवानी

    जंक फूड खाकर 80Kg तक बढ़ गया था इस शख्‍स का वजन, फिर डायट कंट्रोल कर घटाया 20 किलो वेट
    खराब खानपान की आदतों से वजन बढ़ना स्वाभाविक है। अधिक जंक और प्रोसेस्ड फूड खाने वालों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा खराब लाइफस्टाइल के कारण भी शरीर पर चर्बी जमना बहुत आम है। बढ़ता वजन न केवल लोगों की सेहत बल्कि आत्मविश्वास को भी प्रभावित करता है।

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