व्यंग
कितने अच्छे शेर कहता है वो, क्या हुआ वो उच्चारण में मात खाता है। ग़ज़ल को गजल कहता है । शागिर्द को शारगिद कहता है, नुक्ता की गलती छोड़ दी जाएं तो उसमे उस्ताद होने के पूरे गुण मौजूद हैं। किसी के शेर को उठाकर बडी सावधानी छांटकर अपना बना लेता है कि अच्छे से अच्छे शायर भी धोखे खा जाए । कभी उसको दस बजे मुशायरा में बुलाया जाता तो वह हमेशा देर पहुंचता था, क्योंकि उसको अपने शेर किसी उस्ताद को दिखाने होते थे। मगर उस्ताद शेर ठीक तो कर देते थे पर नुक्ता कहा से ठीक करेंगे वो तो खुद को ही सही पढ़ने होते थे, कोई उस्ताद उसे ठीक नहीं कर सकते
बेचारे शायर के अच्छे अच्छे कलाम की हूट होती थी, क्योंकि वो बेचारा नुक्ता का मारा और वो अपने अपमान पर भी ऐसा दिखता कि उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। पर चेहरा गवाह दे देता है कि दिल का हाल क्या है।