धरती स्वर्ग बनाता फूल
उर मकरन्द लुटाता फूल |
कभी न शोक मनाता फूल |
रंग रंगीला सुंदर- सुंदर,
मोहक प्यारा न्यारा फूल |
बाग बगीचे की शोभा को,
सुरभित कर लहराता फूल |
छोटे से अपने जीवन का,
पल पल धन्य बनाता फूल |
फैलाकर अपनी सुगन्ध को ,
महकाता वातायन फूल |
रंगबिरंगे मनहर रंग से,
नित संसार सजाता फूल |
ईश्वर की प्रतिमा पर चढ़कर,
कभी नही इतराता फूल |
मानव की अर्थी पर चढ़कर ,
संवेदना दिखाता फूल |
नारी का श्रंगार करे जब ,
सब सौंदर्य लुटाता फूल |
वीरों की समाधि पर चढ़कर,
मन ही मन हर्षाता फूल |
रह कंटक के मध्य हमेशा,
जीवन भर मुस्काता फूल |
छोटे से अपने जीवन को ,
कभी न व्यर्थ गंवाता फूल |
अपने लिये नही जीता है,
दूजे पर मिट जाता फूल|
सुख दुख की अनुभूति कराता,
मानव मन बसजाता फूल |
शीत ताप लू को हंस सहता,
जीवन रंग लुटाता फूल |
शादी के मंडप सजवाता ,
चार चांद लगवाता फूल |
मंदिर मस्जिद को महकाता ,
कभी न भेद दिखाता फूल |
नहीं शिकायत नहीं गिला कुछ,
कभी न बैर दिखाता फूल |
दुर्गम पथ हो दर्द भरा हो,
रहो प्रफुल्लित कहता फूल |
देता अनुपम सीख सभी को,
धरती स्वर्ग बनाता फूल |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)