कविता

सम्बन्धों में अपनापन हो

सम्बन्धों में अपनापन हो
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चाहें जितनी हो दुरूहता ,
चाहें कितनी बाधाएं हो |
मरुथल में शीतल बयार सी ,
नवल चेतना का गुंजन हो |
प्रीत रीत का स्पंदन हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |

नेह भरा हो बस हर रिश्ता,
मधुमय जीवन की तरंग हो |
स्वजनों की चाहत की सरगम ,
नवल चेतना का गुंजन हो |
रिश्तों में मधुरिम मिठास हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |

दर्पण के भीतर उजलापन,
हर मन के भीतर पलता हो |
गोद पिता की पाकर जैसे,
बालक निधियाँ पा जाता हो |
मन उत्साह सदा बढ़ता हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |

देश काल की सीमाओं में ,
प्रेम भाव के फूल खिले हों |
राजनीति के मल दलदल में,
जहाँ न नेता लोग सने हों |
दहशतगर्दी अब न कहीं हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ (यू पी )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016