कविता

धरती स्वर्ग बनाता फूल

उर मकरन्द लुटाता फूल |
कभी न शोक मनाता फूल |

रंग रंगीला सुंदर- सुंदर,
मोहक प्यारा न्यारा फूल |

बाग बगीचे की शोभा को,
सुरभित कर लहराता फूल |

छोटे से अपने जीवन का,
पल पल धन्य बनाता फूल |

फैलाकर अपनी सुगन्ध को ,
महकाता वातायन फूल |

रंगबिरंगे मनहर रंग से,
नित संसार सजाता फूल |

ईश्वर की प्रतिमा पर चढ़कर,
कभी नही इतराता फूल |

मानव की अर्थी पर चढ़कर ,
संवेदना दिखाता फूल |

नारी का श्रंगार करे जब ,
सब सौंदर्य लुटाता फूल |

वीरों की समाधि पर चढ़कर,
मन ही मन हर्षाता फूल |

रह कंटक के मध्य हमेशा,
जीवन भर मुस्काता फूल |

छोटे से अपने जीवन को ,
कभी न व्यर्थ गंवाता फूल |

अपने लिये नही जीता है,
दूजे पर मिट जाता फूल|

सुख दुख की अनुभूति कराता,
मानव मन बसजाता फूल |

शीत ताप लू को हंस सहता,
जीवन रंग लुटाता फूल |

शादी के मंडप सजवाता ,
चार चांद लगवाता फूल |

मंदिर मस्जिद को महकाता ,
कभी न भेद दिखाता फूल |

नहीं शिकायत नहीं गिला कुछ,
कभी न बैर दिखाता फूल |

दुर्गम पथ हो दर्द भरा हो,
रहो प्रफुल्लित कहता फूल |

देता अनुपम सीख सभी को,
धरती स्वर्ग बनाता फूल |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016