सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 24
इंद्रेश भाई, आपके जन्मदिन पर उपहार स्वरूप प्रस्तुत हैं आपकी ही दो काव्य-रचनाएं आपके लिए-
दो गीत
1 .नन्हीं चिरैया
जब भी तुम
मेरे आँगन में आती हो
मेरे व्यथित हृदय को
पुलकित कर जाती हो
वो तुम्हारा फुदक फुदक कर
चीं-चीं करते हुए
इठलाना बलखाना
अपने पंख फैला कर इतराना
कभी दायें कभी बाएँ
गर्दन घुमाना
मानो एक अनिंद्य सुंदरी
अपने रूप यौवन से भरपूर
सौंदर्य के गर्व से मगरूर
इठलाती बलखाती है
मुझको मोहित कर जाती है
मेरे हृदय में
जीवन की आस जगाती है
फिर से इस जीवन को
नूतन आभास कराती है
प्रतिदिन अपने आँगन में
मैं तुम्हारी राह देखता हूँ
जब तक तुम न आ जाओ
मैं बेचैन रहता हूँ
कहीं कोई बाज
तो तुम्हें शिकार न बना गया हो
तुम्हें भी भय है बाज का
जैसे मानव को यमराज का
पर सभी आशंकाओं को दूर करते हुए
सभी दु:स्वप्नों को दूर करते हुए
तुम फिर मेरे आँगन में आती हो
मेरे व्यथित-चिंतित हृदय को
आनंदित – पुलकित कर जाती हो
ऐ मेरी नन्हीं चिरेय्या
तुम मेरे आँगन में
प्रतिदिन आना
मेरे व्यथित हृदय को
पुलकित कर जाना!!
-इंद्रेश उनियाल
2 .“सपनोँ की उड़ान”
डूबा-डूबा रहता हूँ
न जानूँ में कहाँ !
नील गगन में देखूँ
मैँ नीला आसमाँ !
पंख नहीँ हैं मेरे
पर उड़ता सांझ-सवेरे!
बंद आँखोँ से देखूँ
मैं सारा ये जहाँ!
सपनोँ में खोया हूँ
सागर मेँ डूबा हूँ!
ढ़ूंढ़ रहा हूँ तुझको
तुझे पाऊँ में कहाँ!
तुझे ख़्वाबोँ में देखा है
तुझे सपनोँ में पाया है!
मेरी यादोँ में आकर
अपना रंग जमाया है!
डूबा-डूबा रहता हूँ
न जानूँ मैं कहाँ!
नीलगगन में देखूँ
मैँ नीला आसमाँ!
-इंद्रेश उनियाल
”फूलों ने अमृत का जाम भेजा है
सूरज ने गगन से सलाम भेजा है
मुबारक हो आपको जन्म दिन
तहेदिल से हमने ये पैग़ाम भेजा है.”
इंद्रेश भाई, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाएं-
”जन्मदिवस की बधाई हो,
खुशियों की शहनाई हो,
उठे नज़र जिस ओर, जिधर भी,
मस्त बहारें छाई हों.”