सम्बन्धों में अपनापन हो
सम्बन्धों में अपनापन हो
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चाहें जितनी हो दुरूहता ,
चाहें कितनी बाधाएं हो |
मरुथल में शीतल बयार सी ,
नवल चेतना का गुंजन हो |
प्रीत रीत का स्पंदन हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |
नेह भरा हो बस हर रिश्ता,
मधुमय जीवन की तरंग हो |
स्वजनों की चाहत की सरगम ,
नवल चेतना का गुंजन हो |
रिश्तों में मधुरिम मिठास हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |
दर्पण के भीतर उजलापन,
हर मन के भीतर पलता हो |
गोद पिता की पाकर जैसे,
बालक निधियाँ पा जाता हो |
मन उत्साह सदा बढ़ता हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |
देश काल की सीमाओं में ,
प्रेम भाव के फूल खिले हों |
राजनीति के मल दलदल में,
जहाँ न नेता लोग सने हों |
दहशतगर्दी अब न कहीं हो |
सम्बन्धों में अपनापन हो |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ (यू पी )