कुंडलियां – माया
माया ठगनी रूप को , मनुज जरा पहचान ।
हर लेती मति ये सदा, बात हमारी मान ।।
बात हमारी मान, चाल गहरी चलती है ।
बांध मोह के पाश, खेल खुब रचती है ।।
शिवा कहे सुन बात, पड़े कोई मत छाया ।
लेती है यह छीन , हृदय के सुख को माया।।
माया को तजना कभी , होता नही आसान ।
माया का बंधन यहाँ, जीता हर इंसान।।
जीता हर इंसान, मिले इनसे क्षमता है ।
सब रिश्तों का मूल, मोह माया ममता है ।।
शिवा कहे सुन बात, धरा है जब ये काया ।
सच को कर स्वीकार, बहुत है सुंदर माया ।।
— साधना सिंह शिवा