कुण्डली/छंद

कुंडलियां – माया

माया ठगनी रूप को , मनुज जरा पहचान ।
हर लेती मति ये सदा, बात हमारी मान ।।
बात हमारी मान, चाल गहरी चलती है ।
बांध मोह के पाश, खेल खुब रचती है ।।
शिवा कहे सुन बात, पड़े कोई मत छाया ।
लेती है यह छीन , हृदय के सुख को माया।।

माया को तजना कभी , होता नही आसान ।
माया का बंधन यहाँ, जीता हर इंसान।।
जीता हर इंसान, मिले इनसे क्षमता है ।
सब रिश्तों का मूल, मोह माया ममता है ।।
शिवा कहे सुन बात, धरा है जब ये काया ।
सच को कर स्वीकार, बहुत है सुंदर माया ।।

— साधना सिंह शिवा

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)