फिर आया मधुमास
प्यार का आया बसंत, खिल गए हैं दिग दिगंत|
खेतों में सरसों की कलियां, लेकर आई फिर बसंत|
प्यार की चली फिर हवा ,आ गया मधुमास है|
प्रकृति में अनुराग भरने, आया बनकर आस है|
मन के सोए ख्वाब जागी, प्रीत की कलियां खिली|
वाटिका फूलों से भर गई, बसंती हवा चली|
अब बसंती हवा देखो, प्रीत बनकर छा गई|
अब मुझे तनहाइयों में, याद तेरी आ गई|
कोपलें आने लगी है ,डालियों में फिर नई|
मन में फिर उन्माद जागा, मिलन की आहट हुई |
“रीत” के जीवन में फिर से, प्रीत की जगी आस है|
आस बन कर छा गया है, फिर से यह मधुमास है|
— रीता तिवारी “रीत”