हरियाली छाय रही धरा इठलाय रही
देखो आम्र कुंजन में कोयलिया गावत है
बासन्ती बयार चले झूम -झूम मन हरे
थिरकत बागन में सुख अति पावत है
फूल खिले,मौन हिले खुशियों को ठाँव मिले
कलियाँ नवीन देखो घुँघटा हटावत हैं
प्रीत से पलाश पगे पीर ,पोर- पोर जगे
विरहा की दाह अब कौन दहकावत है
कली खिली कचनार हर्षित हरसिंगार
टेसू -टेसू मन आज मानिनी मनावत है
भावना मधु सुगंध सुरभि से अनुबन्ध
रेशा -रेशा रोम -रोम तन हुलसावत है
भ्रमित भ्रमर हुये मन प्रमुदित हुये
सेना साज ऋतुराज दल बल आवत है ।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)