कविता

सशंकित-श्रवण

जिंदगी में कभी -कभी
ऐसा दौर भी आता है
दिल का चैन,सुकून ,करार
कोई और चुरा ले जाता है !!

मौखिक विष से ज्यादा
कर्ण विष घातक होता है
जीवन का बड़ा सा हिस्सा
श्रवण आधारित होता है

ना जाने कब कौन आकर
शक का बीज बो दे विषम
और उसकी बातों में आकर
होश-ओ हवास खो दें हम!!

अप्रिय बातों को बाहर
फेंक देना हीं उचित है जानिए
जो भी आकर सुनाता है
अति से अति निकृष्ट है जानिए!!

सही श्रवण के वास्ते
सही व्यक्ति चुनना है बेहतर
मही -माखन के वास्ते
दही जमाना है बेहतर !!

मुख मलिन कर क्यों आखिर
चिंता को है बढ़ाना
सुन सशंकित श्रवण क्यों
चितवन में बसाना !!

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)