सामाजिक

संयुक्त परिवार : सौभाग्य और समुन्नती का द्वार

भारत में दशकों पूर्व के जीवन में अगर आ जाए तो हमारे अतीतने हमें समाह अर्थात संयुक्त में रहना सिखाया है, क्योंकि हम कबीलों के नबों में और संयुक्त परिवार में जिए हैं। पूर्व से ही हर समाज,जाति, धर्म में सहपरिवार ही अक्सर दिखाई देते थे जिन्हें कुनबे का नाम दिया जाता था परंतु समय का चक्र चलता गया और हर कुनबा यूंही बिखरता चला गया कि पता ही नहीं चला। आधुनिकता का एक ऐसा दौर आया कि सब बह कर चला गया, परंतु आज भी अगर हम गहराई से देखेंगे तो, अपने आसपास ही ऐसा कुनबा या सहपरिवार जरूर हमें मिलेगा जो उसी पूर्वकाल की तर्ज पर संयुक्त परिवार या कुनबा की तरह एक होगा साथियों, संयुक्त परिवार एक ऐसी गूढ़ पूंजी है जो सभ के पास नहीं होती जिसके पास होती है वह बहुत ही भाग्यशाली है इस युग में और इसकी सूझबूझ बड़े बुजुर्गों को तो अधिक होगी। साथियों, संयुक्त परिवार से तात्पर्य आप हम सभी को मालूम होगा कि परिवार के सभी सदस्य दादा-दादी, चाचा-चाची, माता-पिता उनके पुत्र सभी मिलजुल कर एकजुट रहें इससे ही हम संयुक्त परिवार कहते हैं। अब बदलते जमाने के साथ संयुक्त परिवार भी बहुत कम बचे हैं संयुक्त परिवार अलग अलग होकर एकल परिवार में विभाजित हो रहे हैं और अपना जीवन यापन कर रहे हैं इसके अलग-अलग बहुत कारण हैं हो सकते हैं पारिवारिक, व्यावहारिक व्यापारिक, व्यक्तिगत या और भी अनेक लेकिन कारण हो सकते है। हम उन कारणों में नहीं जाएंगे क्योंकि आज के परिवेश में हम सब जानते हैं कि एक छोटी सी बात भी मुद्दा बन जाती है और परिवार टूट जाता है। पिछले कई दशकों से हमारे सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में बहुत परिवर्तन हुए हैं संयुक्त परिवार के स्थान पर छोटा परिवार सुखी परिवार के नारे ने परिवार को सीमित कर दिया है अब मनुष्य केवल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहकर अपना जीवन सफल बनाना चाहता है माता-पिता को बोझ समझते हुए उन्हें वृद्ध आश्रम भेज अपने कर्तव्य की पूर्ति कर लेता है इसका प्रभाव बच्चों को भोगना पड़ रहा है माता-पिता दोनों के कामकाजी होने के कारण बच्चे अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं वह स्वयंको असुरक्षित समझते हैं तथा उन्हें दादा-दादी और नाना-नानी के प्यार से भी वंचित होना पड़ता है बच्चों में नैतिक शिक्षा की कमी भी दुष्परिणाम है यदि घर में माता-पिता होंगे तो बच्चों का सही मार्गदर्शन करेंगे तथा उन्हें अच्छे संस्कार मिलेंगे अब तो आज फिर से संयुक्त परिवार की आवश्यकता महसूस होने लगी है ताकि बच्चों के भविष्य कानिर्माण हो सके उन्हें मिलजुल कर रहने की भावना का विकास हो तथा बूढ़े माता-पिता भी अपने अकेलेपन से मुक्ति पा सकते हैं इससे बच्चे अपने उत्तरदायित्व व कर्तव्यों का पालन करना सीखेंगे यह तभी संभव होगा जब पुनः संयुक्त परिवार का निर्माण हो तथा उसे पूरे सम्मान के साथ समाज में स्थापित करें साथियों,संयुक्त परिवार बहुत ही फायदेमंद है। आज भी विकट परिस्थितियों में जहां दो जून की रोटी के लिए इंसान को जद्दोजहद करनी पड़ती है और व्यक्ति अपने आप को अकेला महसूस करता है। कई लोगों को सभ कुछ होते हुए भी खालीपन महसूस होता है उसका कारण है संयुक्त परिवार से विशोड़ा, साथियों, हालाकि संयुक्त परिवार की डोर सही तरह से नहीं चलाई जाए तो वास्तव में बेहद बहुत सारी परेशानियों उनका सामना भी करना होता है। वर्तमान परिवेश में अगर युवा पीढ़ी को आक्रोश, गुस्सा बेअदबी पर नियंत्रण तथा संयम व सहनशक्ति का विस्तार करें, तो हमेशा संयुक्त परिवार में सुख का भागी बना रहेगा। वह व्यक्ति विशेष रूप से संयुक्त परिवार का एक फूल हैं और उसका संयुक्त परिवार एक खुशहाली का बाप होगा। उसकी भावी पीढ़ी सुरक्षित होगी सुरक्षित वातावरण, सहयोग मिलेगा समुचित विकास और आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक मानसिक सुरक्षा का वातावरण प्राप्त होगा जो केवल और केवल संयुक्त परिवार से ही प्राप्त किया जा सकता है। एक खुशियों का माहौल उत्पन्न होता है। बच्चों को भी बड़ों छोटों का प्यार व सहयोग मिलता है, घर की जिम्मेदारी को सभी मिलकर उठाते हैं, किसी एक के ऊपर नहीं भार पड़ता, किसी भी समय में मुश्किलों का अकेले सामना नहीं करना होता, त्योहारों का आनंद बड़े मजे और उत्साहपूर्वक मनाने से उत्साह कई गुना बढ़ जाता है, एक खुशियों का माहौल तैयार होता है अगर पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार ज्ञान, व्यवहार का अच्छा समायोजन होता है और एक दूसरे का सहयोग करते हुए आगे बढ़ते हैं। साथियों, बड़े बुजुर्गों का कहना है कि संयुक्त परिवार में सरस्वती मां के ज्ञान की गंगा और लक्ष्मी मां के अस्त्र धन की बरकत होती है। बच्चों में अच्छे संस्कार आते हैं और जिस परिवार में सुख शांति और संतोष विद्यमान हो वह स्वर्ग के समान है।
— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया