सामाजिक

आइए हम एक नये समाज की कल्पना करें

बहुत सारे लोग बोलते हैं कि मैं हिंदू हूं, मैं सनातनी हूं, मैं ब्रह्मचारी हूं इत्यादि। सनातन परंपरा का मैं कभी विरोध नहीं करता हूं। हां मनगढ़ंत कहानियों का मैं अवश्य विरोध करता हूं। जिनमें ईश्वर नाम और शब्द को एक माध्यम बनाकर लोगों का शोषण होता है या किया जाता है। आस्था, भक्ति किसी भी इंसान का विरोधी नहीं हो सकती है। भले वह इंसान और जीव किसी भी धर्म जाति मजहब का हो या फिर नशेड़ी, गजेड़ी या फिर वेश्या इत्यादि हो। मैं तर्क वाली बातों को मानता हूं, हां अगर कोई व्यक्ति अंधविश्वास, पाखंड का सहारा लेकर समाज में जागरूकता फैलाना चाहता है तो उस जागरूकता का मैं कट्टर विरोधी हूं। याद रखिए अगर आप समाज में एक जागरूकता लाना चाहते हैं तो आपको सत्य के मार्ग पर चलना होगा और आपको तर्कों के आधार पर चलना होगा। तभी आप आगे बढ़ पाएंगे अन्यथा आप भी किसी पाखंडी बाबा, मौलवी, धर्मगुरु के जैसे अपना बिजनेस चलाएंगे। आस्था का मतलब यह नहीं कि आप लोगों के भगवान बन जाओ या लोगों को भगवान के नाम पर डरा कर अपना पेट पालो।

आस्था और भक्ति इंसानियत के लिए होती है। आस्था और भक्ति के लिए आपको जंगल में जाकर तपस्या करने की जरूरत नहीं है, बल्कि आपको अपना कर्तव्य, कर्म सही व ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाना होता है। अगर कोई व्यक्ति ईश्वर के होने पर प्रश्नचिन्ह उठाता है इसका मतलब यह नहीं कि आप उसे मार दो। अगर आपकी नजरों में ईश्वर एक पत्थर है तो आप इस दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो। अगर आपको लगता है कि आप पांच समय के नमाज पढ़कर ईश्वर को याद करते हो तो आप भी मूर्ख हो। नमाज पढ़कर और पत्थरों की पूजाकर कर कभी भी ईश्वर को हासिल नहीं किया जा सकता है। ईश्वर, अल्लाह जैसी चीजें मनुष्य ने स्वयं गणित कर रखी है। अगर ईश्वर अल्लाह है तो फिर अन्य जीवों को भी तो उनकी पूजा करनी चाहिए या उन्हें भी तो नमाज पढ़नी चाहिए..? जब भी आप तर्कसंगत बात करेंगे तो आपको लोग गाली गलौज देना शुरू कर देंगे क्योंकि वह इतनी गहराई में जाना ही नहीं चाहते हैं कि ईश्वर क्या है, किसने बनाया, कहां से आया, कैसे बना, क्यों आया इत्यादि ?

इसके अलावा आपके मन में और भी कहीं सवाल पैदा होंगे जैसे त्यौहार क्यों आते हैं, इन्हें किससे बनाया, किस लिए बनाया इत्यादि ? इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है बल्कि सीधा सा लॉजिक है। मानव समाज एकमात्र ऐसा समाज और एक जीव है, जो लगातार अपने बुद्धि का विकास कर रहा है और लगातार अपने आने वाली पीढ़ी को कुछ न कुछ देकर जा रहा है। जबकि अन्य जीव व समाज अपने आने वाली पीढ़ी को कुछ नहीं दे रहा है और ना ही उसकी बुद्धि का विकास हो रहा है। मानव अपनी चीजों को लिख सकता है और मानव ने अपने लिए कई सारी चीजें गणित की है। यहां पर ज़रा आप सोचिए अगर हमारे समाज में शादी की व्यवस्था नहीं होती तो क्या होता हमें खुद पता होता कि हमारा बाप कौन है हमारी मां कौन है…? बिल्कुल भी नहीं पता होता, क्योंकि हम भी अन्य जीवों की तरह रहते और अन्य जीवन की तरह संभोग करते और इधर-उधर भागते इत्यादि।

मानव ने अपने समाज के लिए कई चीजों का गठन किया जैसे शादी ब्याह, नामकरण इत्यादि। इसके अलावा उन्होंने अपने लिए घर बनाना शुरू किया, पानी के लिए कुएं बनाएं, खाने के लिए बीज इकट्ठा कर फसल बोना शुरू किया, दूसरे जानवरों को मारकर खाना शुरू किया, अपने मनोरंजन के लिए कई सारे वाद्य यंत्र का आविष्कार किया, खुशी और अपने गमों के लिए तीज त्योहारों मनाना शुरू किया इत्यादि।

आज मानव आधुनिक युग में है जहां उसके पास मनोरंजन के कई सुविधाएं हैं, रहने के लिए आलिशान घर है, खाने के लिए कहीं सारी चीजें हैं। इसलिए मानव समाज को अब पुरानी व्यवस्था को छोड़ना चाहिए एक नई सामाजिक व्यवस्था की ओर अग्रसर होने की जरूरत है। जिसका निर्माण हमें और आपको करना है। एक स्वच्छ समाज जहां ना कोई अपराध हो, ना किसी स्त्री का अपमान हो, ना किसी पुरुष के साथ दुर्व्यवहार हो, ना ही कोई जाति व्यवस्था हो, ना कोई धर्म हो। एक ऐसा समाज जहां हर इंसान को इंसानियत के नजरों से देखा जाए। ना उसके नाम से, ना उसके धर्म से ना उसकी जाति से और ना ही उसके लिंग से, ना ही उसके रंग से उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव हो। हां मैं ऐसे समाज की कल्पना करता हूं, अगर मेरी हो कल्पना गलत है तो आप मेरी फ्रेंड लिस्ट से हंसते हुए जा सकते हैं। हां जाते-जाते सुनिए अपना अहंकार, घमंड, जाति, धर्म अपने पास रखिएगा। अगर आप सुन नहीं सकते हैं या पढ़ नहीं सकते हैं अपने धर्म जाति के विरुद्ध तो इसका मतलब आप भी उन आतंकवादियों की तरह हैं, जो अपने धर्म के लिए निहत्थे और बेगुनाह हजारों लोगों को मार देते हैं, ठीक उसी प्रकार आप भी किसी की बात को ना सुनकर, ना समझ कर, बिना आकलन किए, बिना सोचे समझे आप उस व्यक्ति के विचारों और उसकी हत्या कर रहे हैं।

— दीप खिमुली

दीप खिमुली

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार दिल्ली