गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिल नही बस में शरारत देखकर।
रंग लिया खुद को मुहब्बत देखकर।।
शर्म से चहरा हुआ रूखसार ये।
आइने में खुद की हालत देखकर।।
कर लिया परदा जमाने से सनम।
आज उनकी फिर अदालत देखकर।।
जब जिक्र आया किताबों मे तेरा।
थम गयी सांसे हकीकत देखकर। ।
अब कहां मुमकिन हो हम दोनो जुदा।
सर झुका तेरी इनायत देखकर।।

प्रीती श्रीवास्तव

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