यूँ ही नहीं
खिलता, महकता, बहकता दिल
गुम तेरी यादों में
कुछ तो बात है
जो ये दिल मेरी सुनता नहीं
बस रहता है भागता तेरी ओर
खो सुध बुध सारी ।।
हो मौसम कोई भी
तपती गर्मी
ठंडी सर्दी
रिमझिम बरखा
बसंत या पतझड़
कम होती नहीं चाहत
इस दिल की
बस रहता है तड़पता
मिलने को तुझ से
सही जाती नहीं पीड़ा
ये विरह की
कुछ तो बात है
तेरे और मेरे बीच में
जो खलती ये विरह इतनी ।।
प्यार का बंधन है ये कुछ खास तेरा मेरा
तभी तो कुछ तो बात है
खास
रिश्ते में हमारे बना बस एक दूजे के लिए
जो विरह में भी खोज लेता पल अपनेपन
ओढ़ तेरी यादों को
कुछ तो है न खास हम में और तुम में
जो मिले इस तरह नसीबों से।।
— मीनाक्षी सुकुमारन