ढलान में जिंदगी
ऐसा रोज हो….
‘मौत’ को डराने का
भारतीय
मनोरंजनात्मक-उपाय !
लगे हाथ
‘कोरोना चालीसा’ पढ़िये !
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जीवन
एक ढलान की तरह है !
ऊपर तो धीरे-धीरे चढ़े थे,
लेकिन नीचे
बहुत तेजी से उतर आएंगे !
मोपासां कहिन ।
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भारत के
उप-प्रधानमंत्री रहे
‘जगजीवन राम’
के जन्मदिवस पर
‘कोरोना’ दुःख के साथ
सादर नमन और श्रद्धांजलि !
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मूर्खों !
पटाखे नहीं छोड़ने हैं !
गाँवों में पटाखों से
बिना मतलब
प्रदूषण फैल रहे हैं !
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मेरा परिवार
‘महामारी’ की
भयावहता को समझता है..
मैंने दो मिनट में
एक मामा और दो मौसी को
हैजा से खोये हैं,
तीन लाशें एकसाथ !
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बुखार से ज्यादा
एक खराब विचार
शरीर को
नुकसान पहुँचाता है !
मोपासां कहिन।
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हिमालय-से अडिग
मेरी छियानबै वर्षीया
दादीजी
आपके स्वस्थजीवन की
कामना लिए
आदरणीया ‘पितामही’ को
सादर प्रणाम !
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आखिर हम
‘भाग्य’ भरोसे हो गए
और कहने लगे
कि उम्मीद पर
दुनिया टिकी है !
वैज्ञानिक बनने चले थे,
आईएससी भी
पास नहीं कर पाए !
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