पंचचामर छंद “देहाभिमान”
कभी न रूप, रंग को, महत्त्व आप दीजिये।
अनित्य ही सदैव ये, विचार आप कीजिये।।
समस्त लोग दास हैं, परन्तु देह तुष्टि के।
नये उपाय ढूँढते, सभी शरीर पुष्टि के।।
शरीर का निखार तो, टिके न चार रोज भी।
मुखारविंद का रहे, न दीप्त नित्य ओज भी।।
तनाभिमान त्याग दें, कभी न नित्य देह है।
असार देह में बसा, परन्तु घोर नेह है।।
समस्त कार्य ईश के, मनुष्य तो निमित्त है।
अचेष्ट देह सर्वथा, चलायमान चित्त है।।
अधीन चित्त प्राण के, अधीन प्राण शक्ति के।
अरूप ब्रह्म-शक्ति ये, टिकी सदैव भक्ति के।।
अतृप्त ही रहे सदा, मलीन देह वासना।
तुरन्त आप त्याग दें, शरीर की उपासना।।
स्वरूप ‘बासुदेव’ का, समस्त विश्व में लखें।
प्रसार दिव्य भक्ति का, समग्र देह में चखें।।
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लघु गुरु x 8 = 16 वर्ण, यति 8+8 पर। चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया