प्रेम बिके बाजार आज
अपनों ने ही छला हमेशा रिश्ते तार-तार हो गये।
प्रेम बिके बाजार आज भाव सभी व्यापार हो गये।।
धरती से अम्बर तक मानव विस्तार बहुत कर डाले।
संतुष्ट हुआ न जीवन, भटकता रहा पिपासा पाले।
अर्पित कर सांसों की समिधा, भवसागर पार हो गये।।
देह सदन को रहे सजाते, पल बीते अर्थ कमाते।
मान-प्रतिष्ठा के आकर्षण सदा रहे व्यर्थ लुभाते।
मानवता से रिश्ता टूटा, सब कुछ परिवार हो गये।।
— प्रमोद दीक्षित मलय