गीत/नवगीत

प्रेम बिके बाजार आज

अपनों ने ही छला हमेशा रिश्ते तार-तार हो गये।
प्रेम बिके बाजार आज भाव सभी व्यापार हो गये।।
धरती से अम्बर तक मानव विस्तार बहुत कर डाले।
संतुष्ट हुआ न जीवन, भटकता रहा पिपासा पाले।
अर्पित कर सांसों की समिधा, भवसागर पार हो गये।।
देह सदन को रहे सजाते, पल बीते अर्थ कमाते।
मान-प्रतिष्ठा के आकर्षण सदा रहे व्यर्थ लुभाते।
मानवता से रिश्ता टूटा, सब कुछ परिवार हो गये।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com