कविता

लाचारी बीमारी

ये कैसी लाचारी है
जो जीना चाहते हैं
वे भी लाचार हैं
क्योंकि उनकी भी
मजबूरियां हैं,
वे भी डरते हैं
डर डर कर जीते है।
अपने परिवार की खातिर
बहुत कुछ सहते,
परंतु बहुत बार उसी परिवार को
बड़ी मुसीबत ,गहरे जख्म दे
दुनियां छोड़ जाते।
गरीब की ये कैसी लाचारी है,
जिंदगी तो उनको भी प्यारी है पर
उससे अधिक उधारी है,
उनके लिए ये सबसे बड़ी बीमारी है
जिंदगी पर भारी है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921