कविता

शीर्षक:- ‘माँ’ एक शब्द ही नहीं

‘माँ’ एक शब्द ही नहीं
भाव है समर्पण, त्याग ,और बलिदान का
इसमें समायी है दुनिया की वह शक्ति
जिसने हम सब की पहचान
इस दुनिया से करवाई है।
माँ………..
मां के आंँचल में समाया है अमिट ब्रम्हांड
जिसके बिना हमारा विकास अधूरा है
मांँ के बिना लगे सारा जग सूना
माँ में संपूर्ण जगत समाया है
माँ……………..
हम सब ने पाया है ईश्वर का स्वरूप
ईश्वर के रूप में माँ ही तो है जिसने
हमारी पहचान कराई इस जगत में
माँ के चरणों में सारी सृष्टि समाई है
माँ……..
परेशानी हो चाहे जितनी भी,
हमारे लिए सदैव मुस्कुराती है माँ
हमारी खुशियों की खातिर
दुखो को भी गले लगाती है माँ
‘माँ’ एक शब्द ही नहीं

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)